महाभारत अध्याय - 7
इस अध्याय में हम धृतराष्ट्र ,पाण्डु तथा विदुर के जन्म के बारे में पढ़ेंगे। महाभारत में सबसे प्रमुख पात्र इनका ही है क्योंकि इनके जन्म द्वारा उनके जन्म की भी रेखाएं बन चुकी थी जिनके बीच आगे चलकर महाभारत का यह गंभीर युद्ध होने वाला था। अंबिका और अंबालिका के द्वारा इन दोनों पुत्र धृतराष्ट्र तथा पाण्डु का जन्म हुआ जिन्होंने आगे चलकर हस्तिनापुर पर राज किया।
धृतराष्ट्र और पाण्डु का जन्म
हस्तिनापुर में विचित्रवीर्य का विवाह अंबिका और अंबालिका के साथ धूमधाम से हो गया सभी बहुत खुश थे। भीष्म राज्य की देख भाल करने लगे तथा विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ समय बिताते थे। एक दिन जब वह सभा में जाने के लिए तैयार हो रहे थे तो अचानक ही उनका स्वास्थ ख़राब हो गया और वह गिर पड़े। वेद ऋषि द्वारा विचित्रवीर्य को मृत घोषित कर दिया गया। विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद महल में सभी बहुत परेशान हो गए थे सभी को यह समझ नहीं आ रहा था की अब राज गद्दी कौन संभालेगा क्योंकि विचित्रवीर्य का तो अभी तक कोई पुत्र भी नहीं था। सत्यवती भीष्म को उनकी प्रतिज्ञा को तोड़ राज्य सँभालने के लिए कहने लगी परंतु भीष्म अपनी इस प्रतिज्ञा को इतनी आसानी से टूटने नहीं दे सकते थे। भीष्म के प्रतिज्ञा न तोड़ने पर सत्यवती ने उनके पुत्र ऋषिमुनि व्यास को बुलाने के लिए आदेश दिया। ऋषि व्यास सत्यवती और ऋषि पराशर के पुत्र थे जब सत्यवती ने पराशर ऋषि की सेवा की थी तब ऋषि पराशर ने सत्यवती के मत्स्य भाव को नष्ट कर दिया था और अच्छी गंध निकलने का भी वरदान दिया था उसके पश्चात् ही महर्षि व्यास का जन्म हुआ इसीलिए महृषि व्यास सत्यवती के ज्येष्ठ पुत्र थे। विचित्रवीर्य और चित्रांगदा की मृत्यु के बाद ऋषि व्यास ही सत्यवती की एक आखरी उम्मीद थे क्योंकि भीष्म अपनी ली हुई प्रतिज्ञा को नहीं तोड़ सकते थे। ऋषि महल में पधारे। ऋषि व्यास ने सत्यवती से एक वर्ष का समय माँगा परन्तु सत्यवती ने उन्हें मना का दिया तथा आदेश दिया की वह जैसा बोलेंगी उन्हें वैसा करना होगा। सत्यवती अंबिका के पास गयी तथा उसे ऋषि व्यास के पास जाने के लिए कहा जब अंबिका ऋषि के पास पहुंची तो वह उन्हें देख भयभीत हो गयी और उन्होंने अपनी आँखे बंद कर ली जिस कारण ऋषि के आशीर्वाद सेउन्होंने एक जन्ममंध ( जन्म से अँधा ) पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम धृतराष्ट्र पड़ा। यह देख सत्यवती ने अंबालिका को ऋषि के बारे में बता दिया जिससे वह उन्हें देख भयभीत न हो तथा एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दे। अंबालिका कक्ष में जैसे ही पहुँची तो उन्होंने ऋषि को देख आँखें तो बंद नहीं की परन्तु डर के कारण उनका रंग उड़ गया और उन्होंने एक ऐसे पुत्र को जन्म दिया जिसका स्वस्थ कभी ठीक नहीं रह सकता था जिसका नाम पाण्डु रखा गया। सत्यवती यह देख कर बहुत निराश हुई और उन्होंने ऋषि व्यास से एक मौका और माँगा और राजकुमारी अंबिका और अंबालिका को आदेश दिया की उनमे से एक ऋषि के पास जाये परंतु दोनों बहुत डरी हुई थी इसीलिए उन्होंने अपने स्थान पर एक दासी को भेज दिया। दासी ऋषि व्यास से बिलकुल न घबराई और उन्होंने एक ऐसे पुत्र को जन्म दिया जो आगे चलकर बहुत विद्वान बनेगा तथा मानव जाती द्वारा बहुत ही सम्मान कमाएगा और इस दासी पुत्र का नाम विधुर पड़ा। सत्यवती ने ऋषि का धन्यवाद किया और उन्हें आशीर्वाद देकर जाने की आज्ञा दी।जब इन तीनो बच्चों की उम्र पढ़ने लिखने और धनुर्धारी सिखने की हुई तो भीष्म उन्हें अपने साथ राज भवन से ले गए। जब वह सब सिख गए तो वह उन्हें अपनी माता सत्यवती के पास ले आये और उन्हें सत्यवती को सौप दिया। धृतराष्ट्र पाण्डु से बड़ा था इसलिए गद्दी पर पहला हक़ धृतराष्ट्र का ही था परन्तु उसके जन्मांन्ध होने के कारण वह राज गद्दी पर नहीं बैठ सकता था इसीलिए राजा चुनने का कर्तव्य भीष्म ने सत्यवती पर छोड़ दिया। जब धृतराष्ट और पाण्डु के बिच किसी एक को राजा बनाने की बात गई तो सत्यवती ने पाण्डु को चुना और उसे हस्तिनापुर का नया महाराज बना दिया गया।
निष्कर्ष: पाण्डु तो महाराज बन कर और गद्दी सँभालने लगा था परन्तु क्या भविष्य में उसके पुत्र भी इतनी ही आसानी से यह पद प्राप्त कर लेंगे ?
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