महाभारत अध्याय - 19

महाभारत अध्याय - 19 

इस अध्याय में हम युधिष्ठिर के युवराज बनने के उपरांत पाँडवों के लिए आने वाली चुनौतियों के बारे में जानेंगे। यह तो आप सब को पता चल ही गया हैं की युधिष्ठिर के युवराज बनने से महल में कितने लोग खुश थे और कितने दुःखी। पाँडवों को इस बात का ज्ञान भी नहीं था की उन्हें आगे कितनी मुश्किलों से जूझना हैं। शकुनि द्वारा उनकी मृत्यु के लिए एक योजना बनायीं गयी थी जिसके बारे में हम इस अध्याय में जानेंगे।  

लाक्षागृह 

लाक्षागृह
युधिष्ठिर के युवराज बनने के पश्चात् पाँडव विजय यात्रा के लिए निकल गए। शकुनि दुर्योधन को धृतराष्ट्र की ओर मोहरा बनाकर अपनी योजना पर सफलता प्राप्त करना चाहता था यही कारण था की दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर को युवराज के पद हटाने की हठ कर ली थी। जब धृतराष्ट्र ने दुर्योधन की बात नहीं मानी तो उसने आत्महत्या करने की धमकी दी धृतराष्ट्र बहुत दुःखी हो गया परन्तु वह अब कुछ नहीं कर सकता था। शकुनि ने धृतराष्ट्र से पांडवों को वारणावत भेजने के लिए कहा जहाँ भगवान शिव के लिए एक उत्सव होना था। जिसमें  युधिष्ठिर जाए और साथ ही उसने वहाँ उनके लिए एक महल भी बनवाया था जो की लाख(मोम) का बना था। जिससे वह जब वहाँ जाकर रहे तो वह उनका महल जलाकर उनको वही ख़तम कर दे। दुर्योधन, दुशासन, और शकुनि इस बात से बहुत खुश थे परन्तु कर्ण इस बात से खुश नहीं था उससे ऐसा करना ठीक नहीं लगता था क्योंकि वह इसे कायरता समझता था। कर्ण अर्जुन का सामना रणभूमि में करना चाहता था परन्तु वह दुर्योधन को मना नहीं कर सकता था। हस्तिनापुर में सबको पता चल गया था की पांडव विजय यात्रा से लौट कर वारणावत जायेंगे। सभी बहुत खुश थे परन्तु शकुनि और दुर्योधन द्वारा बनवाये गए महल पर विदुर को संदेह था इसीलिए उसने अपने गुप्तचर को वारणावत भेज दिया। धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को पांडवों को वारणावत भजने के लिए हामी तो भर दी थी परंतु उसे पता था की उसमे शकुनि और दुर्योधन की कोई तो चाल होगी। वो पुत्र मोह में इतना खो गया था की उसे सही गलत का आभास करना मुश्किल हो गया था। पाँडवों की विजय यात्रा समाप्त हो गई और वह महल लौट आए। महल आकर पाँडवों का स्वागत बहुत धूमधाम से हुआ। धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को वारणावत जाने को कहा और उसने हामी भर दी परन्तु शकुनि चाहता था की युधिष्ठिर के साथ उसके और चारों भाई और उनकी माँ कुंती भी चली जाये जिससे उनकी सारी चिंता दूर जो जाए। शकुनि की इस इच्छा को स्वेमं पूरा करने का अवसर ही नहीं प्राप्त हुआ क्योंकि दुर्योधन के अचानक अच्छा बन जाने वाली बात पाँडवों को भी खटक रही थी इसीलिए उन्होंने युधिष्ठिर के साथ बाकि चार भाईयों ने भी जाने का फैसला कर लिया और युधिष्ठिर इतना भोला था की उसने दुर्योधन की बात को प्रेम समझा तथा धृतराष्ट्र से अपने भाईयों के साथ माँ कुंती को भी वारणावत ले जाने की आज्ञा माँग ली। दूसरी ओर विदुर के द्वारा भेजा हुआ गुप्तचर महल आया और विदुर को बताया की महल तो बहुत ही विशाल और सुन्दर हैं परन्तु महल बनने के समय बहुत से तेल, मोम और चर्बी मँगवाए गए थे। विदुर को समझ आ गया की यह दुर्योधन और शकुनि की कोई चाल हैं। विदुर पाँडवों को यह बताना चाहता था परन्तु शकुनि को इस बात के बारे में भनक पढ़ गयी थी। विदुर जब उनको यह बात बताने लगा तो शकुनि वहाँ आ गया यही कारण था की वह इस बात को पाँडवों से न कह सका परन्तु विदुर ने उनको अपनी बातों से कुछ संकेत देने का प्रयास किया। दुर्योधन और शकुनि युधिष्ठिर के इस निर्णय पर बहुत ही खुश थे। 

गुप्त सुरंग


अगले दिन पांडव वारणावत के लिए निकल गए। युधिष्ठिर विदुर द्वारा बातों के बिच ऐसे संकेतों को सुनकर बहुत अचंभित था और वह उन संकेतों को समझना चाहता था। विदुर के संकेत में आग और बहार निकलने की बात थी जिससे युधिष्ठिर ने फैसला कर लिया की वह उस महल में एक और निकास बनाएंगे। विदुर ने हस्तिनापुर से वारणावत सामान ले जाने वाले लोगो के साथ एक खनिक भेजा जो जमीन खोद सके और एक निकास बना सके। निकास बनवाने का कार्य शुरू हो गया और आग के संकेत के द्वारा सभी भाईयों ने यह फैसला कर लिया की वह एक-एक कर रात्रि के समय उठ कर पेहरा देंगे। अब केवल तीन दिन ही बचे थे शकुनि अपनी योजना को पूरा होते देख बहुत खुश था। दूसरी ओर विदुर द्वारा भेजे गए खनिक ने अपना कार्य पूरा कर युधिष्ठिर के कक्ष में निकास द्वार खोल दिया। पाँडवों का यह फैसला था की वह एक दिन पहले ही उस लाक्षगृह में आग लगा कर निकलने वाले थे। पुरोचन जिसने महल बनाया था वह उस रात जिस दिन पांडव महल में आग लगा कर वहाँ से जाने वाले थे वह किसी को लेकर आया था जो की भीलों की भाती नज़र आ रहे थे। जिसमे पांच भाई और उनकी माँ शामिल थी। जब वह सब पुरोचर के साथ मदिरा का सेवन कर सो गए तो पांडव महल में आग लगा कर सुरंग में से बहार निकल गए। पूरा महल आग की लपटों से घिर गया और सैनिकों में हाहाकार मच गई। पांडव सुरंग से सही सलामत बहार आ गए और वन की ओर निकल गए। 

निष्कर्ष: जिस प्रकार विदुर द्वारा कही गयी बातों को सुन पांडवों उस पर अमल किया और बच निकले इसी प्रकार हमे भी अपने बड़ों की बातों पर ध्यान देना चाहिए वह जो कहते हैं वो हमारे भले के लिए ही होता हैं!


अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हैं तो अपने विचारों को कमैंट्स द्वारा बताए तथा औरो को भी ये आर्टिकल शेयर करे। धन्यवाद। 

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)