महाभारत अध्याय - 11

 महाभारत अध्याय - 11

इस अध्याय में हम यशोदा नंदन श्री कृष्ण के जन्म के बारे में पढ़ेंगे। श्री कृष्ण का भी महाभारत एक बहुत महत्वपूर्ण पात्र हैं। महाभारत में गीता का ज्ञान श्री कृष्ण के द्वारा ही अर्जुन को दिया गया था। श्री कृष्ण ही देवकी के आठवें पुत्र थे जिन्होंने अपने मामा कंस के वध के लिए जन्म लिया था। श्री कृष्ण द्वारा बहुत से बड़े-बड़े काम किये गए जिनके बारे में हम आगे-आगे पढ़ेंगे। 

श्री कृष्ण का जन्म 

श्री कृष्ण जन्म
कंस ने देवकी और वासदेव को कारागार में दाल दिया देखते-देखते समय बिता देवकी अपने पहले पुत्र को जन्म देने वाली थी और वह सोच रही थी की ये तो मेरा पहला पुत्र हैं कंस इसकी हत्या नहीं करेगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ। देवकी के पहले पुत्र का जन्म होते ही उनसे उसकी हत्या कर दी। ऐसे ही उसने एक - एक कर देवकी के सातों पुत्रो की हत्या कर दी। कंस को लग रहा था ऐसा कर के वह अपनी मृत्यु से मुक्त हो जायेगा परन्तु ऐसा न था। अब आठवें पुत्र के जन्म लेने का समय आ गया था जिसके    रूप में स्वेमं नारायण ने जन्म लिया था। जैसे ही देवकी के आठवें पुत्र का जन्म हुआ तभी आकाश वाणी हुई की इस पुत्र का जीवित रहना बहुत जरुरी हैं इसीलिए इस पुत्र को यमुना पार गोकुल के नंदराय के पास ले जाए और इस के स्थान पर नंदराय के आने वाले पुत्र को ले आये उन दोनों की हथकड़ियाँ खुल गयी। कारागार में पेहरा दे रहे सभी सैनिक बिहोश हो गए सभी द्वार अपने आप खुल गए। वासुदेव जैसे ही महल से बाहर निकले तभी बहुत तेज़ वर्षा होने लगी। वर्षा होने के कारण सारी जगह पानी भर गया इसीलिए वासुदेव ने अपने पुत्र को अपने सर पर एक टोकरी में रख लिया। जैसे ही उन्होंने अपने पुत्र को सर पर रखा तो आकाश  उनसे आशीर्वाद लेकर और तेज़ बरसने लगा। तभी नाग देव ने उस बालक को वर्षा की बूंदों से बचाने के लिए अपने फ़न फ़ैला कर उसे अपने निचे छिपा लिया। वासुदेव गोकुल नगरी पहुंचे उन्होंने नंदराय को अपना पुत्र सौंपा तभी नंदराय ने उन्हें अपनी पुत्री दे दी।  जिसके जन्म के बारे में अभी तक किसी को भी पता था। नंदराय ने उन्हें समय व्यर्थ न करते हुए जाने के लिए कहा। वासुदेव जैसे ही उस पुत्री को लेकर लौटे सब जैसा था वैसा ही होगया। सब लोगो में आठवें पुत्र के जन्म की बात फ़ैल गयी। कंस यह खबर सुन जल्द ही अपने कक्ष से कारागार की ओर निकला। जब कंस को पता चला की एक बालिका ने जन्म लिया हैं तो उसने उस ऋषि को दंड  देने का फ़ैसला कर लिए और जब उस ऋषि के कारागार में जाकर उससे प्रशन किया। तब ऋषि ने उत्तर में यह बता  दिया की जन्म लेने वाला आठवां पुत्र ही था और उसने जन्म ले लिया हैं। इसे सुन कंस बहुत ही क्रोधित हो गया और कारागार की ओर चलागया। जैसे ही कंस को बच्चे को हाथ में लिया। वह हवा में उड़ गया और तभी आकाशवाणी हुई की "मैं वो नहीं हूँ परन्तु हाँ वो तो जन्म ले चूका हैं जो तेरी मृत्यु का कारण बनेगा " कंस सोच में पड़ गया और अपने गुप्तचरों को देवकी के आठवें पुत्र को ढूंढने का आदेश दिया। गुप्तचरों द्वारा कंस को देवकी के पुत्र के गोकुल में होने के बारे में पता चल गया और उसने गोकुल में उस बालक की हत्या करने के लिए एक राक्षस को भेज दिया। 

दूसरी ओर गोकुल में नंदराय और यशोदा के पुत्र के जन्म पर सभी बहुत खुश थे और उनके पुत्र का धूम-धाम से स्वागत कर रहे थे। गोकुल में कंस की भेजीं हुई राक्षसनी पूतना ने अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया। उसने उन सभी बच्चों जिन्होंने देवकी के पुत्र के जन्म के समय पर जन्म लिया था। उन सभी बच्चों को अपना विषैला दूध पीला कर मरना चालू कर दिया। गोकुल में सभी उसके प्रकोप से बहुत डर गए थे क्योंकि वह एक-एक कर सभी बच्चों को मार रही थी। कुछ समय में ही उन सभी बच्चों की हत्या हो गयी थी जिन्होंने नंदराय और यशोदा के पुत्र के साथ जन्म लिया था। अब केवल उनका पुत्र ही बचा था। राक्षसनी पूतना नंदराय के घर में छिप कर पहुंची और उनके पुत्र को उठा कर उनके घर से बहुत दूर ले गयी। जैसे ही उसने उस बालक को दूध पिलाया तो उस बालक ने उसे काट लिया और पूतना की हत्या हो गयी। जैसे ही कंस को यह पता चला की उस दिन जन्म लेने वाले सभी बच्चे मारे जा चुके हैं तो वह बहुत प्रसन हुआ। 

निष्कर्ष: व्यक्ति को अपने स्वार्थ में इतना लालची नहीं हो जाना चाहिए की उसे कुछ दिखाई ही न दे। 

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