महाभारत अध्याय - 10

 महाभारत अध्याय - 10 

इस अध्याय में हम पाण्डु और धृतराष्ट्र के पुत्रों  के जन्म के बारे में पढ़ेंगे। पाण्डु के पुत्र आगे चलकर पांडव और धृतराष्ट्र के पुत्र आगे चलकर कौरव कहलाए। पांडव पाँच भाई थे और कौरव सौं भाई थे। पांडव और कौरव चचेरे भाई थे परन्तु फिर भी यही वह दो पक्ष थे जिनके बिच आगे चल कर महाभारत जैसा भीषड़ युद्ध हुआ। 

पांडवों और कौरवों का जन्म 

पांडवों और कौरवों का जन्म


महाराज पाण्डु को वन में अपनी दोनों रानियों कुंती और माद्री के साथ आए बहुत वक्त हो गया था। पाण्डु अपने मन में पुत्र प्राप्ति की इच्छा को छुपाए बैठे थे वह भी चाहते थे की उनका भी पुत्र हो और वह आगे चलकर उनकी पीढ़ियों को आगे बढ़ाये परन्तु ऋषि किंडोम के श्राप के कारण ऐसा होना असंभव था। जब उन्होंने अपने मन की बात अपनी दोनों रानियों को बताई तो कुंती को ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए गए वरदान के बारे में याद आया और उन्होंने यह बात महाराज पाण्डु को बताई पाण्डु बहुत प्रसन हुए। पाण्डु ने कुंती को उस वरदान का इस्तेमाल कर पुत्र की प्राप्ति करने के लिए कहा कुंती ने धर्मराज का आवाहन कर एक पुत्र की प्राप्ति की। "धर्मराज का यह पुत्र जो हमेशा धर्म और सत्य का साथ देगा उसका नाम आगे चलकर युधिष्ठिर होगा। " कुंती ने पवन देवता का आवाहन कर एक पुत्र की प्राप्ति की जिसने जन्म लेते ही एक शीला पर गिरकर उस शीला को तोड़ दिया। कुंती का यह पुत्र ही आगे चलकर भीम के नाम से जाना गया। दूसरी और हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र के सबसे बड़े पुत्र दुर्योधन का जन्म हुआ। ऐसे ही कुंती द्वारा इन्द्र देव की कृपा से अर्जुन का जन्म हुआ और फिर इसी वरदान से माद्री ने नकुल और सहदेव की  प्राप्ति की। जहाँ पांडवों का जन्म स्वेमं देवों के आवाहन से हुआ था वही दूसरी और कौरवों क जन्म घड़ों में रखे मांस के टुकड़ो के विकास से हुआ था। जिसमें से धृतराष्ट्र को सौं पुत्रों और एक पुत्री की प्राप्ति हुई।

महाभारत के सभी पात्रों का जन्म हो गया था। इनके साथ ही एक और सबसे महत्वपूर्ण पात्र का जन्म होना अभी बाकि था जिनका जन्म मथुरा में हुआ उनके जन्म के बारे में जानने से हम थोड़ा मथुरा के बारे में जान लेते हैं। मथुरा राज्य के युवराज कंस थे जो बहुत ही शक्तिशाली और अभिमानी थे।  बहुत से राजा महराजा उसके आगे अपना शीश झुकाते थे। कंस से मथुरा के सभी लोग डरते थे। कंस बहुत ही अत्याचारी और निर्दय था उसने तो अपने पिता को भी कारगार में दाल दिया था जिससे उसके द्वारा किये गए हर कार्य को गलत बोलने वाला कोई बचे ही नहीं। कंस की सभा में वासुदेव भी एक सदस्य थे जो कंस के मित्र भी थे परन्तु वह कंस की इन गलतियों को केवल इसीलिए नज़र अंदाज़ कर रहे थे क्योंकि यदि वह भी कंस के खिलाफ हो जाते तो कंस उन्हें भी कारागार में डाल देता और फिर मथुरा को बचने वाला कोई न बचता। कंस ने अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से तय कर दिया। वासुदेव कंस को मना नहीं कर सके और देवकी और वासुदेव का विवाह हो गया। जब कंस देवकी और वासुदेव को रथ पर बैठा कर ले जा रहे थे।तभी एक ऋषि जो की देवकी और वसु देव को आशीर्वाद देने आये थे उन्होंने यह कह दिया की इन दोनों का आठवां पुत्र ही कंस की मृत्यु का कारण बनेगा और तभी एक आकाशवाणी भी हुई वह सुनकर कंस बहुत क्रोधित हो गया। उसने देवकी और वासुदेव की मृत्यु करने का फ़ैसला कर लिया परन्तु वासुदेव ने उनसे उन्हें कारगार में डालने का अनुराध किया और यह कहा की वह अपने सभी पुत्रो को उन्हें सौप देंगे फिर उन्हें उन सभी पुत्रों के साथ जो करना हो वह कर सकते हैं। यह सुन कंस खुश हो गया और उसने उन्हें कारगर में दाल दिया। 

निष्कर्ष: हमे अपने जीवन में ऐसे कार्य नहीं करने चाहिए जिनका परिणाम बहुत ही बुरा हो। 

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