महाभारत अध्याय - 6

 महाभारत अध्याय - 6 

इस अध्याय में हम काशी नरेश के बारे में पढ़ेंगे जिन्होंने अपनी पुत्रियों का स्वयंवर रचाया है। काशी नरेश की तीन पुत्रियाँ हैं -अंबा ,अंबिका और अंबालिका। यह स्वयंवर उनके इच्छानुसार तथा उन्हें मनपसंद वर को चुनने के लिए रखा गया हैं वह जिसे अपने काबिल समझे उसे चुन अपना वर बना सकती हैं। काशी नरेश द्वारा स्वयंवर के लिए भारत के सभी राजा और राजकुमारों को निमंत्रण पहुँचाया गया परन्तु काशी नरेश ने हस्तिनापुर को निमंत्रण भेजने के लिए मना कर दिया था। जिसका कारण था की महाराज शांतनु ने कशी नरेश की बहन से विवाह करने के लिए उन्हें मना कर दिया था। 

अंबा की प्रतिज्ञा 

कशी की राजकुमारी अम्बा

काशी नरेश द्वारा निमंत्रण न मिलने के पश्चात् भीष्म बहुत क्रोधित हों गए तथा अपनी माँ सत्यवती से आज्ञा लेकर कशी की ओर निकल पड़े। वही दूसरे ओर कशी नरेश ने स्वयंवर की सभी तैयारियाँ कर ली थी एक-एक कर सभी राजा स्वयंवर में पहुँच रहे थे। राजकुमारी अम्बा राजा शाल्व को पसंद करती थी और उनसे ही शादी करना चाहती थी। राजा शाल्व भी केवल अंबा के लिए ही इस स्वयंवर में आये थे। सभी राजाओं और राजकुमारों के आने के पश्चात् जब सभा में भीष्म के नाम की घोषणा हुई तो सारी सभा हैरान हो गयी। भीष्म के सभा में आते ही सभी राजा और राजकुमार उनका उपहास उड़ाने लगे तथा बोले- लगता हैं भीष्म प्रतिज्ञा राजकुमारियों की सुंदरता के सागर में डूब गयी; लगता हैं यह सिर्फ महाराज शांतनु की मृत्यु का ही इंतजार कर रहे थे। भीष्म सभी की बात सुन क्रोधित हो गए तथा धनुष उठाया और सभी को शांत होने के लिए बोला। काशी नरेश ने भीष्म के बिना निमंत्रण के आने पर उनका अपमान किया।भीष्म ने काशी नरेश के अपमान का उत्तर देते हुए यह कहा की "काशी की राजकुमारियाँ का विवाह हमेशा से कुरुवंशियों में ही होता आ रहा हैं तो फिर आज किस बात का संदेह। मैं विचित्रवीर्य के प्रतिनिधित्व में यह आया हूँ और इन कन्याओं को विचित्रवीर्य की रानियाँ बनने के लिए हस्तिनापुर जा रहा हूँ। यदि किसी के अंदर इतना साहस हैं की वह मुझे रोक पाए तो रोकले। सभी ने जब आपत्ति जताई तो भीष्म ने एक बाण चला कर ही सभा के सभी राजा और राजकुमारोँ के मुकुट को उतार काशी नरेश के चरणों में दाल दिया तथा काशी नरेश को उनकी पुत्रियों को आशीर्वाद देकर उन्हें विदा करने के लिए कहा। तीनों भीष्म के साथ रथ पर सवार होकर जा ही रही थी की कुछ दूर चलते ही बिच रस्ते में राजा शाल्व ने उनका रास्ता रोक लिया तथा भीष्म को उनसे युद्ध करने के लिए कहने लगे भीष्म द्वारा न करने पर भी शाल्व ने बाण चला दिया परन्तु जब भीष्म ने धनुष उठाया और बाण चलाया  तो वह कुछ नहीं कर सका तथा हार बैठा। भीष्म हस्तिनापुर की और लौट गए। हस्तिनापुर लौटकर भीष्म ने तीनो राजकुमारियों का परिचय सत्यवती से कराया तभी अंबा ने सत्यवती को अपने मन की बात बताई तथा कहा की वह भय के मारे उस समय भीष्म को यह बात न कह पायी की वह राजा शाल्व को पसंद करती हैं और मन ही मन उन्हें अपना पति मान चुकी हैं । भीष्म ने अंबा को शाल्व भिजवाने का प्रबंध कराया तथा अंबा को भिजवा दिया। 

अंबा जैसे ही शाल्व नरेश के पास पहुंची तो शाल्व ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया तथा बोले की वह हारी हुई वस्तु को स्वीकार नहीं करेंगे और अंबा को वापस भेज दिया। अम्बा हस्तिनापुर पहुंची और वहा जाकर विचित्रवीर्य जो की हस्तिनापुर पर राज कर रहे थे उन्हें सारी बात बताते हुए कहा की भीष्म ने उनका अपमान किया हैं अब वह किसी से भी विवाह नहीं कर सकती इसीलिए भीष्म अंबा से विवाह कर ले। भीष्म ने अपने वचन बाध्य होने तथा ली हुई प्रतिज्ञा के बारे में बताते हुए यह कहा की वह विवाह नहीं कर सकते। अंबा भीष्म की इस बात पर क्रोधित हो गयी तथा उन्होंने भरी सभा में यह प्रतिज्ञा ले ली की वह एक न एक दिन अपने साथ होने वाले अपमान का बदला जरूर लेंगी तथा चाहे जितने भी जन्म लेने पड़े भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। 

निष्कर्ष : कशी की राजकुमारी अम्बा ने बदला लेने की प्रतिज्ञा तो ले ली परन्तु वह किस प्रकार बदला लेंगी यह जानना अभी बाकि हैं। 

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