महाभारत अध्याय - 9
इस अध्याय में हम महाराज पाण्डु के दूसरे विवाह के बारे में पढ़ेंगे। पाण्डु का दूसरा विवाह मद्र देश की राज कुमारी माद्री से हुआ था। माद्री बहुत ही सुन्दर और कुंती से उम्र में छोटी थी। इसी अध्याय में हम पाण्डु के कुंती और माद्री संग महल छोड़ने और राज-पाठ को बड़े भाई धृतराष्ट्र को सौपने के पीछे का कारण जानेंगे।
माद्री संग पाण्डु का विवाह
जैसा की आप जानते हैं की अभी कुंती और पाण्डु के विवाह को कुछ समय ही हुआ था और पाण्डु को युद्ध यात्रा पर निकलना पड़ा था इसीलिए कुंती बहुत उदास थी। पाण्डु जब अपनी युद्ध यात्रा के बिच में थे तो उनके मार्ग में मद्र देश के राजकुमार अपना रथ लिए आ खड़े हुए। पाण्डु ने उनसे युद्ध करने के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा की वह मित्रता चाहते हैं और चाहते हैं की पाण्डु उनकी बहन माद्री से विवाह कर ले। यह सुन कर पाण्डु ने उत्तर दिया की इस प्रशन का जवाब तो स्वेमं माद्री को कुंती से ही लेना होगा इसीलिए मैं चाहता हूँ की आप अपनी बहन को मेरे साथ हस्तिनापुर भेज दे। मद्र राजकुमार ने अपनी बहन को आशीर्वाद देकर जाने को कहा। पाण्डु और माद्री हस्तिनापुर पहुँचे और कुंती से मिले कुंती ने कोई प्रशन नहीं किया और माद्री को गले लगा लिया। कुंती ने माद्री का परिचय सभी बडों से कराया। पाण्डु के युद्ध यात्रा से स्वस्थ लौट आने पर सभी बहुत खुश थे। पाण्डु बहुत सी यात्राएँ कर चुके थे और उन्होंने हस्तिनापुर की सीमाएँ बहुत दूर तक फ़ैला दी थी इसीलिए सब ने यह निर्णय लिया की पाण्डु को कुछ समय के लिए सारा राज- पाठ छोर कर अपनी रानियों के साथ समय व्यतीत करना चाहिए। पाण्डु ने सबकी बात मान ली और राजमुकुट और राज गद्दी धृतराष्ट्र को सौंपने का फैसला किया जब तक के वह अपने स्थान पर वापस न आ जाए। धृतराष्ट्र पाण्डु के इस फैसले से बहुत प्रसन्न हो गए वह जानते थे की यह मुकुट और यह गद्दी उनके पास बस कुछ समय के लिए ही है परन्तु फिर भी वह अपनी इस ख़ुशी को कम नहीं करना चाहते थे। गांधारी के भाई शकुनि ने धृतराष्ट्र को पाण्डु के ख़िलाफ़ करने की योजना आरम्भ कर दी थी वह रोज़ ही उनके कक्ष में आते और धृतराष्ट्र को उनके राज मुकुट और गद्दी पांडु को वापस न देने के लिए कहते। शकुनि चाहते थे की हस्तिनापुर का महाराज धृतराष्ट्र बन जाये क्योंकि वह अपनी बहन गांधारी को महारानी बने देखना चाहते थे।पाण्डु वन में अपनी दोनों रानियों के साथ समय बिता रहे थे ऐसे ही समय बीतता गया। पाण्डु और माद्री कई बार शिकार करने के लिए भी जाते थे।एक दिन जब पाण्डु भोजन कर रहे थे तो माद्री को एक बाघ की आवाज़ सुनाई दी जिसको सुन उन्होंने पाण्डु से उसे पकड़ के लाने को कहा। पाण्डु माद्री की इच्छा पूर्ण करने के लिए उसके पीछे चले गए। वन में कुछ दूर जाते ही जब उन्होंने बाघ को मरने के लिए बाण चलाया तो वह बाण जाके एक ऋषि को लग गया जिनका नाम किंडोम था। वह वहाँ वन में अपनी पत्नी के साथ समय बिता रहे थे पाण्डु द्वारा चलाया गया तीर दोनों के हृदय पर लगा। पाण्डु ने जैसे ही किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुनी तो वह दौड़ कर वहाँ पहुँचे और ऋषि किंडोम की ऐसी स्थिति में देख पाण्डु ने उनसे शमा माँगी परन्तु ऋषि बहुत ही क्रोधित हो गए। ऋषि ने क्रोध में आकर पाण्डु को श्राप दे दिया की वह "जब भी किसी स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाएँगे तो उसी समय उनकी मृत्यु हो जाएगी" और ऋषि की मृत्यु हो गयी। पाण्डु बहुत परेशान हो गए और वापस लौटे। उन्होंने लौटकर दोनों रानियों को सारी बात बताई। दोनों रानियाँ बहुत परेशान हो गयी। वह वापस हस्तिनापुर की ओर लौटे और सभी को यह बात बताई। महल पहुँच कर सभी की बातें सुन पाण्डु ने यह फ़ैसला किया की वह अब वनवास पर चले जायेंगे और उन्होंने सारा राज्य धृतराष्ट्र को सौप दिया। धृतराष्ट्र मन ही मन बहुत प्रसन हो गए। कुंती और माद्री ने भी पाण्डु के साथ वन जाने का फैसला कर लिया। तीनो सबसे आशीर्वाद लेकर वापस वन की ओर निकल पड़े।
निष्कर्ष: हमें हमेशा कोई भी कार्य देख के करना चाहिए बिना जाने किसी भी चीज़ का अनुमान लगाना गलत हैं।
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