महाभारत अध्याय - 2
इस अध्याय में हम महाराज शांतनु के जीवन काल के बारे में जानेंगे। महाराज शांतनु का महाभारत में एक प्रमुख पात्र हैं। ब्रह्मदेव के श्राप के कारण उन्होंने पृथ्वी पर शांतनु बनकर जन्म लिया। वे हस्तिनापुर नरेश प्रतिक के पुत्र थे। महाराज प्रतिक के पश्चात् उनकी गद्दी महाराज शांतनु द्वारा ही संभाली गयी। शांतनु कुरु वंश से थे। इनका विवाह माता गँगा से हुआ जिसके बाद इनका विवाह सत्यवती से भी हुआ।अभी हम लोग गँगा और शांतनु के विवाह के बारे में पढ़ेंगे।
शांतनु और गँगा का विवाह
एक दिन महाराज शांतनु गँगा तट पर शिकार कर रहे थे तभी गँगा माँ वहाँ से गुजर रही थी और उन्हें देखते ही महाराज शांतनु को माता गँगा पसंद आ गई। महाराज शांतनु ने जब माता गँगा से विवाह का प्रस्ताव किया तो उन्होंने न तो नहीं कहा परन्तु महाराज शांतनु से एक वचन माँगा। माँ गँगा ने कहा की मैँ चाहती हूँ की चाहे "मैं जो भी करू आप मुझसे कभी प्रशन न करे और यदि आपने कभी कोई प्रशन किया तो में उसका ऊतर देकर सदैव के लिए आपसे दूर चली जाऊँगी। "
राजा शांतनु ने उत्तर देते हुए कहा की ठीक हैं "न तो मैं तुमसे कभी कोई प्रशन करूँगा और न ही कभी उससे जानने की चेष्टा रखूंगा मुझे तुम्हारा ये वचन स्वीकार हैं।" ऐसे ही महाराज शांतनु और गँगा का विवाह हुआ। विवाह के कुछ समय बाद जब दोनों को एक पुत्र की प्राप्ति हुई तो माँ गँगा ने अपने पुत्र को नदी में बाहा दिया। शांतनु वचन बध्य होने के कारण कुछ न कह सके। कुछ समय बीत गया माँ गँगा एक - एक कर अपने सात पुत्रों को इसी तरह नदी में बहा चूँकि थी परन्तु अब जब आठवें पुत्र का जन्म हुआ तो राजा शांतनु अपने आप को रोक नहीं पाए तथा गँगा को अपने आठवें पुत्र को नदी में बहाने से रोक लिया तथा उनसे यह प्रशन किया की वह ऐसा क्यों कर रही हैं तभी उनका दिया हुआ वचन टूट गया।
माँ गँगा ने अपने पुत्रों को नदी में बहाने का कारण बताते हुए कहा की "मैंने अपने पुत्रों को मारा नहीं हैं मैंने तो इन्हें श्राप से मुक्त कराया हैं। आपके यह आठों पुत्र वसु हैं जिनको ऋषि वशिष्ठ ने धरती पर जन्म लेने का श्राप दिया था। मुझसे उनका यह दुःख देखा नहीं गया इसीलिए मैंने उन्हें यह वचन दिया था की में उन्हें इस लोक में अपनी कोख से जन्म देकर उनको मुक्ति दिवाऊँगी परन्तु लगता हैं मेरा ये आठवां पुत्र अभी तक अपने श्राप की अंतिम रेखा तक नहीं पंहुचा इसे अभी यह श्राप जीना हैं इसीलिए मेँ आपके इस पुत्र को नहीं बहाऊँगी तथा अब मुझे आपको छोड़ कर जाना होगा।" माँ गँगा के यह कहने पर राजा शांतनु ने उन्हें यह कहा की तुम्हारे जाने का क्या काऱण हैं तो माता गँगा ने उत्तर दिया की "मैं और आप भी पिछले जन्म के एक श्राप की वजह से साथ थे परन्तु अब वह श्राप भी मुक्त हो गया हैं तो अब मुझे जाना होगा" ये कहकर गँगा वह से अपने पुत्र को लेकर जाने लगी तभी महाराज शांतनु ने कहा की मुझे मेरा यह पुत्र तो देती जाओ तब उत्तर देते हुआ गँगा ने कहा की अभी इसका समय नहीं आया हैं समय आने पर में आपके पुत्र को आपको सौंप दूँगी। माँ गँगा ने कहा मैंने अपने इस पुत्र का नाम देवरथ रखा परन्तु पता नहीं आगे चल कर इसका नाम क्या हो जाये।
राजा शांतनु जब अपने महल लौट रहे थे तभी उन्हें एक पेड़ के नीचे दो बच्चे रखे हुए नज़र आये जिनको कोई वहाँ छोड़ गया हो राजा ने उन दोनों को उठाया तथा उन्हें अपने साथ रखने का फैसला कर लिया। महाराज शांतनु ने उनको किसी ऋषि की कृपा समझा था इसीलिए उन दोनों में से लड़के का नाम - कृपा तथा लड़की का नाम - कृपी रख दिया। महाराज अपने पुत्र की वापसी के लिए इतने व्याकुल थे की हर समय वह महल से गंगा घाट तथा गंगा घाट से महल के चक्कर लगते रहते थे इन सब में वह उन बच्चों की अपने साथ नहीं रख सकते थे इसलिए उन्होंने उन दोनों बच्चों को महाऋषि बृहस्पति को सौप दिया।
निष्कर्ष : शांतनु द्वारा किये गए पिछले जन्म के कर्मो का फल उन्हें इस जन्म में भुगतना ही पड़ा इसीलिए कहते हैं की अपने जीवन में जो क्रम करो उसे सोच समझ कर करो।
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