महाभारत अध्याय - 24
इस अध्याय में हम युधिष्ठिर के राज्य अभिषेक और पांडवों के हस्तिनापुर छोड़ खांडवप्रस्त में जाकर रहने और उसका निर्माण कर उसे इन्द्रप्रस्त बनने के बारे में पढ़ेंगे। साथ ही अर्जुन का विवाह सुभद्रा के साथ किस प्रकार हुआ और उसके पीछे का कारण क्या था यह भी जानेंगे। जानकारी के लिए बता दे की सुभद्रा वासुदेव की पुत्री और श्री कृष्ण की बहन थी। सुभद्रा कभी अर्जुन से मिली तो नहीं थी परन्तु वह मन ही मन उनके शौर्ये और कुशलता के कारण उन्हें चाहने लगी थी।
खांडवप्रस्त का निर्माण
पांडवों ने हस्तिनापुर छोड़ खांडवप्रस्त जाकर रहने का फैसला कर लिया था। पांडव और श्री कृष्ण भी महल से जाने से पहले सबसे मिल रहे थे। युधिष्ठिर के राज्य अभिषेक की तैयारी होने लगी थी। दूसरी ओर दुर्योधन ने बलराम जी को हस्तिनापुर का भ्रमण कराते-कराते अपनी बातों में फसा लिया था और उनसे गधा युद्ध सिखने की मांग भी कर ली थी फिर क्या था बलराम जी ने जब भीम को गधा युद्ध सिखाया था। तो वह दुर्योधन को कैसे मना कर सकते थे। बलराम जी ने दुर्योधन को गधा युद्ध सीखने का फैसला कर लिया और वह इतने भोले थे की दुर्योधन की बातों में आ गए। अब युधिष्ठिर के राज्य अभिषेक का समय आ गया था महल में सभी बहुत खुश थे और वह लोग जो शुरू से ही कभी पांडवो के लिए खुश नहीं हुए वह आज कैसे खुश हो सकते थे। धृतराष्ट्र ने राज्य सभा में हस्तिनापुर के विभाजन और युधिष्ठिर के राज्य अभिषेक की घोषणा कर दी। महर्षि वेद व्यास सभा में पधारे और उन्होंने सबको आशीर्वाद दिया तथा द्रौपदी को आशीर्वाद के साथ अपने केशों का ध्यान रखने की भी चेतावनी दी। युधिष्ठिर का सफलता पूर्ण राज्य अभिषेक हो गया। युधिष्ठिर ने सबसे आशीर्वाद लेकर खांडवप्रस्त की ओर अपना कदम बढ़ाया। युधिष्ठिर के साथ भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, श्री कृष्ण, बलराम जी और वेद व्यास भी भूमि पूजन के लिए खांडवप्रस्त के लिए निकल गए। खांडवप्रस्त पहुँचकर अर्जुन ने इंद्रा देव का आशीर्वाद लेकर पांडवों के साथ भूमि पूजन किया। पांडवो ने कुछ ही समय में देव वास्तुकार जी के साथ मिलकर खांडवप्रस्त को सपनों की नगरी बना दिया। खांडवप्रस्त इंद्रा देव के द्वारा ही बनाई गयी नगरी थी जिसका नाम पांडवो ने इन्द्रप्रस्त रख दिया।
अर्जुन संग सुभद्रा विवाह
इन्द्रप्रस्त में सभी ख़ुशी-ख़ुशी रह रहे थे। श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन विजय यात्रा पर निकल गए क्योंकि श्री कृष्ण चाहते थे की अब इन्द्रप्रस्त की सीमाएँ भी बढ़ जाये। इसी के साथ श्री कृष्ण अर्जुन का विवाह उनकी बहन सुभद्रा से भी करना चाहते थे। दूसरी ओर शकुनि भी श्री कृष्ण की इस योजना को जान गया था इसीलिए उसने दुर्योधन को बलराम जी को बातों में फसा कर उनसे सुभद्रा संग विवाह का प्रस्ताव रखने को कहा। दुर्योधन की गधा युद्ध की शिक्षा भी अब समाप्त हो गयी थी जब बलराम जी ने दुर्योधन से आशीर्वाद के रूप में कोई पुरस्कार मांगने के लिए कहा तो उसने बलराम जी से सुभद्रा का हाथ मांग लिया। बलराम जी ने दुर्योधन को अपनी तरफ से तो है करदी पर अपने पिता से इस बारे में बात करने की बात की और द्वारिका चले गए। दूसरी ओर श्री कृष्ण यह जानते थे की दुर्योधन बलराम जी के भोलेपन का फैयदा उठा कर उनसे इसी तरह का कोई पुरस्कार माँगेगा। श्री कृष्ण ने भी अपने पिता से सुभद्रा संग अर्जुन के विवाह के बारे में बात करने का फैसला कर लिया और जब अर्जुन द्वारिका पहुंचे तो उनका मिलान सुभद्रा से भी करा दिया। जब श्री कृष्ण अपने पिता के पास पहुँचे तो वहाँ बलराम जी पहले से ही पहुँचे थे जिन्होंने अपने माता-पिता से दुर्योधन संग सुभद्रा के विवाह के बारे में बात कर ली थी परन्तु श्री कृष्ण ऐसा नहीं चाहते थे इसीलिए उन्होंने अर्जुन को सुभद्रा का हरण करने का सुझाव दिया। श्री कृष्ण अपनी ही बहन का हरण करने के लिए इसीलिए कह रहे थे क्योकि वह जानते थे की आने वाले कल में क्या होने वाला हैं। अर्जुन ने श्री कृष्ण की आज्ञा ले ली। श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुबह सुभद्रा के मंदिर पूजा करने जाने के बारे में बता दिया जिससे अर्जुन सुभद्रा का हरण वहाँ जाकर कर सके साथ ही उन्होंने सुभद्रा को भी मंदिर पूजा करने जाने को कहा। श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह सुझाव भी दिया जब वह हरण कर ले तो रथ की रस्सी सुभद्रा के हाथों में पकड़ा दे और उसे अपना सारथि बना ले। अर्जुन सबसे मिलकर महल से निकल गए और मंदिर जाने के रस्ते में ही उन्होंने सुभद्रा का हरण कर लिया। जब द्वारिका में इस बात के बारे में पता चला तो बलराम जी बहुत क्रोधित हो गए। महल के लोगो ने बलराम जी से अर्जुन का रास्ता रोकने के लिए कहा तभी श्री कृष्ण ने बलराम जी को कहा की "कही ऐसा तो नहीं की अपने उसका विवाह दुर्योधन से करने का फैसला किया था इसीलिए उसने ही अर्जुन को सहायता के लिया उसका हरण करने को कहा हो क्योंकि खबर तो ऐसी मिली हैं की स्वेमं सुभद्रा ही रथ चला रही थी और उसने सिपाहियों से उसकी मदद करने के लिए भी नहीं कहा।" और जब बलराम जी ने श्री कृष्ण से यह पूछा की सुभद्रा को यह किसने बताया की उसका विवाह दुर्योधन से हो रहा हैं तो कृष्ण जी ने यह बात अपने ऊपर ले ली। जब बाकि लोगो ने इसका विरोध किया तो कृष्ण ने उन्हें भी अर्जुन के शौर्य और कुशलता का ज्ञान दिया और बताया की उससे अच्छा वर सुभद्रा के लिए कोई और नहीं तो सकता और अर्जुन को सम्मान के साथ महल वापस ले आने को कहा। बलराम जी जानते थे श्री कृष्ण बातें बनने में बहुत ही अच्छे हैं और वह उनका मुकाबला न कर पाएंगे इसीलिए उन्होंने सभी को शांत करा दिया। अर्जुन को सभी सम्मान सहित महल ले आये और सुभद्रा और अर्जुन का विवाह हो गया।निष्कर्ष: खांडवप्रस्त चाहे जितना भी पथरीला और उजड़ा हुआ था पांडवों ने उसे इन्द्रप्रस्त बनने के लिए बहुत मेहनत की इसी प्रकार हमें कभी भी हिम्मत नहीं हरनी चाहिए और हर चुनौती का डट कर सामना करना चाहिए।