महाभारत अध्याय - 12
इस अध्याय में हम देवकी के आठवें पुत्र के बारे में जानेंगे। जिनको हम श्री कृष्ण के नाम से भी जानते हैं और जिनको स्वेमं उनके ही मामा कंस ही अपनी रक्षा करने के लिए मारना चाहते थे क्योंकि श्री कृष्ण ही देवकी के वह पुत्र थे जो कंस यानी अपने ही मामा की मृत्यु का कारण बनने वाला था। श्री कृष्ण विष्णु के अवतार थे और उनका जन्म ही दुनिया से असत्य को मिटाने के लिए हुआ था। इस अध्याय में हम उनके बालपन के बारे में पढ़ेंगे और जानेंगे की वह कितने नटखट और चंचल थे।
श्री कृष्ण का बचपन
पूतना की हत्या हो चुकी थी और गुप्तचरों की गलत सूचना के कारण कंस को लग रहा था की उसने देवकी के आठवें पुत्र को मार कर अपनी मृत्यु का संकट दूर कर दिया हैं परंतु ऐसा न था। देवकी का आठवां पुत्र कृष्ण अभी भी नंद नगरी गोकुल में बड़ा हो रहा था जिसकी तो भनक भी कंस को नहीं थी। कृष्ण बहुत ही चंचल और नटखट था पूरा गोकुल नंद लाला के पुत्र कृष्ण से बहुत प्यार करता था। कृष्ण छुप कर गोकुल के सभी घरों से माखन चुराकर खाता और खुश होता था। कृष्ण के एक भाई और एक बहन भी थे। भाई का नाम बलराम और बहन का नाम सुभद्रा था वह भी कृष्ण को बहुत प्यार करते थे। ऐसे ही समय बीत रहा था एक दिन गोकुल में सब परेशान थे जिसका कारण गोकुल की नदी के पानी का जहरीला होना था। पानी के जहरीले होने के कारण जो भी जानवर उसे पीता उनकी मृत्यु हो जाती। गोकुल के लोग इसका समाधान निकलने का प्रयास कर रहे थे। एक दिन जब श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ उसी नदी के किनारे खेल रहे थ और खेलते-खेलते उनकी गेंद नदी में चली गई तो वह उससे लेने नदी में चले गए। नदी में जाते ही श्री कृष्ण ने देखा कि नदी में एक बहुत बड़ा नाग हैं। वह नाग ही इस विष को नदी में फैला रहा था। जब बहुत समय तक कृष्ण वापस नही लौटा तो उनके मित्रों ने नंदराय और यशोदा को बुलाया वह बहुत परेशान हो गए। श्री कृष्ण ने नदी के अंदर उस नाग से मुकाबला किया और उसको हरा कर नदी से जाने और अपना विष हटाने के लिए कहा नाग देव मान गए। श्री कृष्ण नाग देव के सार पर खड़े हो गए और नाग देव कृष्ण को नदी के बाहर ले आए। कृष्ण को सही सलामत लौटते देख सब बहुत खुश हो गए। गोकुल में सभी कृष्ण को बहुत प्यार करते थे और गोकुल की सभी गोपियाँ तो कृष्ण की बांसुरी सुनने के लिए हमेशा व्याकुल रहती थीं परंतु श्री कृष्ण तो केवल राधा के लिए ही बांसुरी बजाते था। श्री कृष्ण और राधा एक-दूसरे को पसन्द करते थे। श्री कृष्ण इतने छोटे होने के बाद भी बहुत ही समझदार थे इसीलिए सारी नंद नगरी उनकी बात ही मानती थीं और श्री कृष्ण के कहने पर ही कार्य करती थी। एक दिन श्री कृष्ण ने गोकुल का माखन मथुरा (जहाँ कंस राज करता था) भिजवाने से मना कर दिया। गोकुल के निवासियों ने कृष्ण को कंस के क्रोध और कहर के बारे में तो बताया परंतु कृष्ण न माना और आपने फैसले पर ही अटल रहे। जब कंस की सेना तक यह बात पहुंची तो सेना ने गोकुल पर आक्रमण कर दिया। कृष्ण ने उनसे मुकाबला कर उन्हे बंदी बना लिया और जब कंस को यह बात पता चली तो उसने दो राक्षसों को गोकुल नागरी जलाने का आदेश दिया। राक्षस नंद नगरी पहुंचे और तबाही फैलाने लगे सब जगह आग लगा कर गोकुल को नष्ट करने लगे। श्री कृष्ण ने उन राक्षसों को भी मार गिराया। दोनों राक्षस अब मर चुके थे। गोकुल के लोग कृष्ण की बहादुरी से बहुत ही प्रसन्न हो गए और उनका कहना मानने का फैसला करने लगे।
एक दिन यशोदा इंद्र देव की पूजा करने के लिए सामग्री जमा कर रही थी तभी कृष्ण वहा आए और पूछा की किसकी पूजा होने वाली हैं माता यशोदा ने उत्तर दिया। श्री कृष्ण इंद्र देव की पूजा करने के लिए माना करने लगे और बोले की हमें तो उनकी पूजा करनी चाहिए जो पूजा के योग्य हों जैसे - गाय, नदी, वन, पर्वत क्योंकि इन सब के द्वारा ही हमारा जीवन सफल हुआ हैं। श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा और बोले की इंद्र देव इस बात पर क्रोधित नही होंगे और यदि हो गए तो में उनसे नहीं डराता। यह बात सुन इंद्र देव बहुत क्रोधित हो गए और अचानक से बहुत तेज वर्षा होने लगी और आसमान में बिजली जोरों से कड़कने लगी। यह सब देख सभी बहुत परेशान हो गए पूरे गोकुल में इतनी तेज बारिश हुई की लोग यह देख कर डर गए और कृष्ण से सहायता मांगने लगे। कृष्ण ने बिना कुछ सोचे-समझे गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया और पुरे गोकुल वासियों को उसके नीचे शरण दी। इंद्र इस चमत्कार को देख समझ गए थे की यह स्वेमं विष्णु के अवतार हैं। उन्होंने शमा माँगी और श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त किया की कृष्ण उनके पुत्र अर्जुन का हमेशा ध्यान रखेंगे। इंद्र देव ने वर्षा रोक दी और वापस चलें गए।
निष्कर्ष: हमें सभी को एक समान समझना चाहिए किसी को भी छोटा या नीचा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।
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