महाभारत अध्याय - 15

महाभारत अध्याय - 15 

इस अध्याय में हम उस बालक के बारे में जानेंगे जिसे पांडवों की माँ कुंती ने अपनी भूल के कारण सूर्य देव से प्राप्त किया  था और फिर समाज से डर कर उसे नदी में छोड दिया था क्योंकि उस समय वह  आविवाह थी। वह बालक सूर्य का अवतार था और इसीलिए वह बालक अब तक जीवित था। दूसरा ओर हम दुर्योधन की बढ़ती इर्षा जो उसे किसी की जान लेने तक मजबूर कर रही थी इस बारे में भी पढ़ेंगे। 

सूर्य पुत्र - कर्ण 

सूर्य पुत्र - कर्ण
धीरे - धीरे समय बीत रहा था पाण्डु पुत्र महल में सभी के साथ रहने से बहुत खुश थे। एक दिन अधिरथ जो महल में धृतराष्ट्र के सारथि के रूप में कार्य करता था उसने धृतराष्ट्र से महल छोड़ने की बात की जिससे वह अपने बेटे की शिक्षा पर ध्यान दे सके।  सभी ने उससे प्रशन किया की वह किसका पुत्र है क्योंकि अधिरथ का कोई पुत्र नहीं था और न ही वह किसी पुत्र की प्राप्ति कर सकता था। अधिरथ ने बताया की एक दिन जब वह और उसकी पत्नी नदी किनारे भ्रमड़ करने गए थे तो वहाँ एक टोकरी में उन्हें एक बालक मिला जिसके साथ कोई भी नहीं था तभी उन्होंने  उस बालक को अपनाने का निर्णय कर लिया। वह कवच और कुंडल पहनें जन्मा था जो उसके शरीर के साथ जुड़े हुए थे। वह बालक ही कुंती का वह पुत्र था जिसको कुंती द्वारा उसकी गलती के कारण पानी में बहाना पड़ा था । अधिरथ ने महाराज धृतराष्ट्र , भीषम पितामह , विदुर को सब सच सच बता दिया। अधिरथ ने अपने स्थान पर धृतराष्ट्र के लिए संजय नाम के एक सारथि को चुना। विदुर और पितामाह भीष्म ने संजय को परखा और धृतराष्ट्र के सारथि के पद पर नियुक्त कर दिया। अधिरथ महल छोड़ कर चला गया।

ख़ीर में विष  

पांडव महल में आकर बहुत खुश थे। भीम तो सबसे ज्यादा खुश था क्योंकि महल में उसे बहुत से पकवान खाने को मिलते थे वह जितना बलशाली था उसे उससे कई ज्यादा भूक लगती थी। भीम को पकवान बहुत पसंद थे और अगर कोई उसके लिए बने खाने को कोई खा ले तो वह बहुत गुस्सा हो जाता था। एक दिन जब सभी बच्चे वन खेल रहे थे तो भीम अकेला नदी किनार बैठा था वह अर्जुन से नाराज़ था क्योंकि उसने भीम के लिए बानी खीर खा ली थी तभी वहाँ दुर्योधन आया और उसे फल का लालच देकर उसे अपने साथ खेलने को कहने लगा और फिर वह उसे वन में ही बनी एक कुटिया में ले आया। कुटिया में शकुनि ने पहले से ही बहुत सारी खीर बनवा राखी थी जो भीम ने खायी और वो भीहोश हो गया क्योंकि उस ख़ीर में विष मिला था। दुर्योधन ने उसे एक चटाई में बंधा और गंगा नदी किनारे ले जाकर गंगा में फेक दिया। महल में पहुँचकर उसने जब यह बात शकुनि को बताई तो वह बहुत खुश हो गया। दूसरी ओर भीम के चारों भाई भीम को लेकर बहुत परेशान थे वह उसे ढूंढ रहे थे परन्तु वह कही नहीं मिला। वह महल लौट गए और सबको सब बताया। बहुत से सिपाही भीम को ढूंढने गए। महल में सभी बहुत परेशान थे। भीम को नदी में एक साँप ने काटा जिससे उसका विष ख़तम हो गया और उसे होश आ गया। पानी में रहने वाले नाग उसे बंदी बनाकर नाग देव के पास ले गए। जैसे ही नाग देव को भीम ने अपना परिचय दिया तो नाग देव बहुत ख़ुश हुए और उन्होंने भीम को एक ऐसा चमत्कारी रस दिया जिसमे दस हाथियों का बल था। उस रास को पीकर भीम वापस चला गया। भीम जैसे ही महल में आया सब बहुत ही खुश हो गए। जब आकर उसने अपनी माता कुंती और चारों भाइयों को यह बताई की उसे दुर्योधन ने विषैली ख़ीर खिलाई थी। तो युधिष्ठिर जो पांडवों में सबसे बड़ा था उसने भीम को इस बात को छुपाने और किसी को न बताने को कहा। युधिष्ठिर बहुत ही समझदार था और वह अपने ही भाइयों को लड़ता देखना नहीं चाहता था। कुंती ने भी भीम को यही आदेश दिया। भीम माँ की बात नहीं टाल सकता था इसीलिए बिना कुछ बोले मान गया परन्तु विदुर को सब पता चल गया था उन्होंने भीष्म  को जाकर सारी बात बता दी। इन सभी बातों को सुन भीष्म बहुत ही क्रोधित हो गए परन्तु वह कुछ नहीं कर सकते थे। शकुनि ने दुर्योधन को भी चुप रहने को कहा और यह भी कहा की वह भीम को उकसाए और जैसे ही वह कुछ करे अपने पिता से उसकी शिकायत कर दे। 

निष्कर्ष: भीम को मारने की योजना तो पाँडवों का पहला पड़ाव ही था! 

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