महाभारत अध्याय - 14

 महाभारत अध्याय - 14 

इस अध्याय में हम पाण्डु और उसकी दूसरी पत्नी माद्री की मृत्यु किस कारण हुई यह जानेंगे। साथ ही कुंती के  अपने पाँच पुत्रों को लेकर हस्तिनापुर लौट जाने के पश्चात् कौन-कौन इस बात से खुश और दुखी था यह भी हम इसी अध्याय में जानेंगे। 

पाण्डु की मृत्यु , कुंती का हस्तिनापुर प्रस्थान 

पाण्डु की मृत्यु

कंस का वध तो हो गया था और अब देवकी और वासुदेव भी कारागार की जंजीरों से मुक्त हो गए थे इसीलिए कहानी वापस पांडवों की ओर ले चलते हैं। पाण्डु को पाँच पुत्रों की प्राप्ति हो गई थी। जिसमें पहला पुत्र युधिष्ठिर था जिसका जन्म यम देव की आराधना द्वारा हुआ था इसीलिए वह आगे चलकर धर्मराज और सत्यवादी बने , दूसरा पुत्र भीम था जिसका जन्म पवन देव की आराधना द्वारा हुआ था इसीलिए वह आगे चलकर बलवान और शक्तिशाली बने, तीसरा पुत्र अर्जुन था जिसका जन्म इंद्रा देव की आराधना द्वारा हुआ था वह आगे चलकर बहुत बड़े धनुर्धर बने, चौथे और पाँचवे पुत्र नकुल और सहदेव थे जो जुड़वाँ हुए थे और दो अश्विनीकुमारों - नासत्य और दस्त्र के अंश थे जिनको अपने माता-पिता से आशीर्वाद के रूप में दैवीय चिकित्सक  का ज्ञान प्राप्त हुआ था। पाण्डु, कुंती और माद्री के पाँचों पुत्र ही बड़े बलवान और ज्ञानी थे। वह अब धनुर्विद्या और शिक्षा प्रात्प करने योग्य हो गए थे। एक दिन जब पाण्डु वन में बैठ कर ध्यान लगा रहे थे तो वहाँ माद्री जो उनकी पत्नी थी स्नान करने हेतु नदी किनारे पहुँची। पाण्डु उनकी खूबसूरती के आगे ऋषि का श्राप भूल गए और जैसे ही वह माद्री के पास गए और उन्हें गले लगाया उनकी मृत्यु हो गयी। माद्री पाण्डु की मृत्यु का कारण अपने आप को समझने लगी और दुःखी होकर उसने भी उनके साथ ही प्राण त्याग दिए। अब कुंती अपने पाँच पुत्रों के साथ वन में अकेली रह गई थी जहाँ देवकी और वासुदेव (श्री कृष्ण के माता-पिता जिनको कुंती अपने भाई और भाभी मानती थी) वह पहुँचे। वासुदेव ने कुंती को अपने साथ मथुरा ले जाने का फैसला कर लिया परन्तु कुंती हस्तिनापुर की रानी थी और यही कारण था की वह मथुरा नहीं जा सकती थी इसीलिए वह हस्तिनापुर लौट गई। हस्तिनापुर लौटते ही उनको भीष्म पितमाह महल में लाए वह सबसे मिली। सब उन्हें देख बहुत ही दुखी हो गए। कुंती ने सबसे अपने पुत्रों का परिचय कराया परन्तु धृतराष्ट्र के पुत्रों ने पाण्डु के पुत्रों को अपना भाई मानने से इंकार कर दिया सभी को लगा की अभी तो बचपना हैं वक़्त रहते सब ठीक हो जाएगा। 

समय बीत गया था एक दिन ऋषि व्यास हस्तिनापुर आए और अब सत्यवती को भी राज - पाठ छोड़ वनवास पर जाने के लिए कहने लगे। ऋषि व्यास द्वारा सत्यवती को हस्तिनापुर छोड़ देने के बारे में कहने के भी बहुत से कारण थे  जिन्हे अभी हम आगे जानेंगे। सत्यवती भी व्यास की बातों को समझ गई थी की अब समय आ गया हैं की वह महल छोड़ कर चली जाए क्योंकि पाण्डु और धृतराष्ट्र की पत्नियाँ अब उसके स्थान पर कार्य कर सकती थी इसलिए उसने अम्बिका और अम्बालिका को भी अपने साथ चलने के लिए आदेश दिया। सत्यवती ने भीष्म के हाथोँ में हस्तिनापुर राज्य के साथ-साथ धृतराष्ट्र , गांधारी, और कुंती को भी सौंपा और अंबालिका और अंबिका को लेकर ऋषि व्यास के साथ वन की ओर निकल गई। पाण्डु के पुत्रों के महल में आने और कुंती के भी लौटने से सभी खुश थे परन्तु शकुनि (जो गांधारी का भाई था ) इस बात से खुश न था क्योंकि वह जनता था की आगे चल कर राज गद्दी पाण्डु का सबसे बड़ा बेटा युधिष्ठिर ही संभालेगा और यही बात उससे बिकुल नहीं पसंद थी। वह अपनी बहन के बेटे दुर्योधन को राज गद्दी पर बैठा देखना चाहता था इसीलिए उसने धृतराष्ट्र को उसके ही भाई के बच्चों और पत्नी के बारे में भड़काना शुरू कर दिया। धृतराष्ट्र तो समझदार था परन्तु दुर्योधन अभी केवल एक बालक था इसीलिए उसको उनके खिलाफ करना शकुनि के लिए आसान था जो उसने किया और कामयाब हो गया। हस्तिनापुर आकर कुंती ने पाण्डु पुत्रों को भी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने भेज दिया जहाँ धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। 

निष्कर्ष: धृतराष्ट्र अभी तक तो शकुनि की बातों में नहीं आया था परंतु वह कब तक अपने इस फैसले पर अटल रहता हैं यही जानना बाकि हैं!!

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