महाभारत अध्याय - 17

महाभारत अध्याय - 17  

इस अध्याय में हम श्री कृष्ण का विवाह रुक्मणि से किस प्रकार हुआ यह जानेंगे तथा जरासंध जो श्री कृष्ण को पसंद नहीं करता था और बहुत अभिमानी था उसके विषय में भी जानेंगे। जरासंध श्री कृष्ण से क्रोधित इसीलिए था क्योंकि कंस के वध के कारण उसकी दो पुत्रियाँ विध्वा हो गई थी। जरासंध कंस का ही एक रूप था जो ज्यादा समय तक श्री कृष्ण से दुश्मनी रखकर बच नहीं सकता था। उसने पूरी मथुरा नगरी में अपना डर फैला रखा था। 

श्री कृष्ण का विवाह 

श्री कृष्ण का विवाह
श्री कृष्ण की शिक्षा समाप्त हो गई थी और उन्होंने अपने गुरु को गुरु दक्षिणा भी दे दी थी। जब वह मथुरा लौट ही रहे थे की उनके गुरुकुल में  परशुराम जी पधारे और उन्होंने उनको यह आदेश दिया की वह जरासंध के द्वारा फैलाए गए डर को ख़तम करे और साथ ही जरासंध जैसे अत्याचारी को उसके कर्मों की सजा दे। कृष्ण मथुरा नगरी लौट गए और वहाँ जाकर मथुरा वासियों को एक नई नगरी में जाकर रहने का सुझाव दिया क्योंकि जरासंध ने वहाँ कोहराम मचा रखा था सब उससे डरते थे। कोई भी मथुरा छोड़ कर जाना नहीं चाहता था क्योंकि ऐसा करना तो रणभूमि से बच कर भागना कहलाता परन्तु जब स्वेमं सामने श्री कृष्ण हो तो कौन कितने समय तक उनकी बात को मानने से मना कर सकता था। सबने हामी भर दी और द्वारिका नगरी के निर्माण के लिए विश्वकर्मा जी को बुलाया गया। द्वारिका नगरी का निर्माण होते ही सब वहाँ जाकर रहने लगे। द्वारिका नगरी सागर के बिच एक बहुत ही सुरक्षित और शांत नगर बन गया था। जहाँ जाकर सभी बहुत खुश थे। दूसरी जरासंध बहुत ही क्रोधित हो रहा था परन्तु वह द्वारिका पर अकेले आक्रमण नहीं कर सकता था इसीलिए उसने अन्य राज्यों से मदद माँगने के बजाए उनसे रिश्ता जोड़ने का सोच लिया। जिससे वह युद्ध के समय कृष्ण के सामने उसकी तरफ से लड़ने के लिए कोई मना न कर पाए। जरासंध ने शिशुपाल (जो चेदि राज्य के राजकुमार थे और जरासंध के रिश्तेदार में से भी थे वह साथ ही श्री कृष्ण के भुआ और पांडवों की मौसी के बेटे भी थे।) से मदद मांगने का फैसला किया। जरासंध ने शिशुपाल से रुक्मणि का विवाह करने का सोच लिया। रुक्मणि विधर्भ देश की राजकुमारी थी जो बहुत ही सुंदर थी। जरासंध ने यह विवाह विदर्भ देश से संपर्क और रिश्ता जोड़ने के लिए किया था। जिससे वह रुक्मणि के भाई को अपनी तरफ कर सके। रुक्मणि का भाई रुक्मी बहुत ही बलशाली था इसीलिए जरासंध ने उससे चुना। जरासंध ने विधर्भ जाकर शिशुपाल से रुक्मणि के विवाह का प्रस्ताव रखा। तभी सभा में रुक्मणि का दूसरे भाई रुक्मिन पधारे और उन्होंने रुक्मणि के विषय में उसका विवाह श्री कृष्ण से करने के लिए कहा। रुक्मिन की यह बात सुन रुक्मी बहुत क्रोधित हो गया और श्री कृष्ण के बारे में बहुत कुछ कहने लगा। यह सब देख रुक्मणि के पिता ने शिशुपाल का विवाह रुक्मणि से तय कर दिया। 

एकलव्य जिससे द्रोणाचाय ने बहुत ही कठोर परीक्षा ली थी वह अब जरासंध के साथ रहता था और साथ ही रुक्मी का मित्र भी था इसीलिए रुक्मी ने उसके द्वारा ही शिशुपाल को रुक्मणि के स्वयंवर का प्रस्ताव पंहुचा दिया। शिशुपाल भी श्री कृष्ण को पसंद नहीं करता था इसलिए जरासंध ने उसे रुक्मणि से विवाह के लिए चुना था। जब रुक्मणि को यह पता चला की जरासंध ने उसका विवाह शिशुपाल से करने का प्रस्ताव रखा हैं तो वह बहुत दुखी हो गयी क्योंकि वह उससे विवाह नहीं करना चाहती थी। वह श्री कृष्ण को पसंद करती थी। रुक्मी ने रुक्मणि को स्वयंवर में शिशुपाल को ही वरमाला पहनाने का आदेश दिया क्योंकि उन्होंने जरासंध को वचन दिया था। रुकमणी बहुत ही दुखी थी उसे अपने  मनपसंद वर को चुनने का भी अवसर नहीं मिल रहा था इसीलिए उसने एक सूचना पत्र द्वारिका श्री कृष्ण के पास भिजवा दिया। श्री कृष्ण ने बलराम जी को सारी बात बता दी। बलराम जी ने सेना ले जाने के लिए कहा तो श्री कृष्ण ने मना कर दिया और कहाँ की मैं पहले चला जाता हूँ आप सेना लेकर बाद में आ जाइएगा। श्री कृष्ण विधर्भ देश की ओर निकल गए। विधर्भ देश में शिशुपाल पहुँच चूका था। रुक्मणि देवालय जाने के बहाने महल से निकल गयी और वहाँ जाकर पूजा करके वह महल लौट ही रही थी की तभी वहाँ श्री कृष्ण आ गए। रुक्मणि श्री कृष्ण को देख कर बहुत खुश हो गई और उनके साथ रथ पर सवार हो कर वहाँ से चली गयी। महल में यह बात पहुँची की रुक्मणि का हरण हो गया हैं तो उसके भाई बहुत क्रोधित हो गए। वही दूसरी और बलराम जी सेना लेकर विधर्भ देश पहुँच गए और आक्रमण कर दिया। श्री कृष्ण रुक्मणि को लेकर जा रहे थे की बिच में रुक्मणि का भाई रुक्मी आ गया और श्री को युद्ध की चुनौती देने लगा परन्तु वह श्री कृष्ण के सामने कुछ समय भी नहीं टिक पाया और हार मान ली। श्री कृष्ण रुक्मणि को लेकर चले गए। रुक्मणि और श्री कृष्ण का विवाह हो गया। 

निष्कर्ष:  रुक्मणि ने श्री कृष्ण को अपने साफ़ हृदय और पूरी निष्ठा से पुकारा की उन्हें आना ही पड़ा इसीलिए ईश्वर को पुकारने या याद करते समय व्यक्ति का ह्रदय साफ़ और पूरी निष्ठा होना अनिवार्य हैं!

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