महाभारत अध्याय - 5
इस अध्याय में हम सत्यवती और शांतनु के पुत्रों के शासन काल तथा भीष्म द्वारा सत्यवती को दिया गया वचन पूरा होते देखेंगे। भीष्म ने किस प्रकार अपने राज्य की रक्षा करने के वचन को निभाया और अपने भाइयों को राज गद्दी पर नियुक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी इन सभी बातों के बारे में हम इसी अध्याय में पढ़ेंगे। भीष्म एक अच्छे पुत्र तो थे ही और अब उन्होंने एक अच्छे भाई होने का भी फ़र्ज़ निभाना भी शुरू कर दिया था।
चित्रांगदा और विचित्रवीर्य
भीष्म की प्रतिज्ञा के बाद सत्यवती और शांतनु हमेशा उसके साथ हुए अन्याय के बारे में ही सोचते रहते थे। शांतनु को हस्तिनापुर के आने वाले कल की चिंता रहती थी परन्तु वह यह भी जानते थे की उनका पुत्र भीष्म उनके हस्तिनापुर की हमेशा रक्षा करेगा तथा किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होने देगा। महाराज शांतनु समझ चुके थे की भीष्म को किसी कारण वर्ष ही गँगा द्वारा नदी में डालने से बचाया गया हैं क्योंकि इसे तो अभी आगे चल कर बहुत से कार्य करने हैं। महर्षि बृहस्पति भी हस्तिनापुर छोड़ कर जा रहे थे वह जाते - जाते कृपाचार्य को भीष्म के साथ छोड़ गए जिससे आने वाले कल में भीष्म को यदि उनकी आवश्यकता पड़े तो उनके स्थान पर उनके शिष्य कृपाचार्य वहाँ हो तथा वह भीष्म की सहायता कर सके। भीष्म कृपाचार्य को एक मित्र के रूप में प्राप्त करके बहुत प्रसन थे। कृपाचर्या की बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हो गया था। द्रोणचर्या भी बहुत ही बड़े धनुर्धर थे और वे नीतिशास्त्र में भी निपुण थे। द्रोणाचार्य से तो स्वयं भीष्म भी धनुर्विद्या सीखना चाहते थे।समय बीत गया सत्यवती ने दो पुत्रों को जन्म दिया। जिनमे से एक का नाम चित्रांगद और दुसरे का नाम विचित्रवीर्य था परन्तु खुश होने के बजाये शांतनु अब भी बहुत निराश थे। शांतनु और सत्यवती को भीष्म के साथ हुए अन्याय के बारे में सोच-सोच कर हमेशा निराशा प्राप्त होती थी। शांतनु इस अंधकार में डूबते चले गए। ऐसे ही एक दिन सत्यवती तथा उससे पैदा हुए दोनों पुत्रों विचित्रवीर्य और चित्रागंदा को भीष्म को सौंप शांतनु परलोक सिधार गए। भीष्म ने चित्रांगद को राज गद्दी सौंपी गई परंतु वह बहुत समय तक राज नहीं कर पाया तथा अपने ही नाम के गंधर्व के हाथों मारा गया। इसके बाद भीष्म ने विचित्रवीर्य को राज गद्दी सौंपी । विचित्रवीर्य को राज सिंहासन पर बैठने का बड़ा समाहरोह हुआ। विचित्रवीर्य अब राज शासन सँभालने लगा तथा अब सत्यवती तथा भीष्म उसके विवाह के बारे में सोचने लगे थे।
निष्कर्ष: भीष्म द्वारा महाराज शांतनु को दिया गया राज्य में किसी के साथ अन्याय न होने का वचन भविष्य में क्या मोड़ लेता हैं यह किसे मालूम ?
अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हैं तो अपने विचारों को कमैंट्स द्वारा बताए तथा औरो को भी ये आर्टिकल शेयर करे। धन्यवाद।