महाभारत अध्याय - 25
इस अध्याय में हम सुभद्रा की द्रौपदी के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना के बारे में पढ़ेंगे। साथ ही युधिष्ठिर द्वारा कराये जा रहे राजसूर्ये यज्ञ के बिच आने कई कारणों के बारे में भी जानेंगे जिसमे से एक जरासंध भी था। जरासंध मगध देश का राजा था और कंस का ससुर भी था। वह श्री कृष्ण से बहुत ही क्रोधित था क्योंकि उन्होंने कंस का वध किया था और उनको दोनों पुत्रियाँ विध्वा हो गयी थी। जरासंध का जन्म और मृत्यु किस प्रकार हुआ इस बात के बारे में भी हम इसी अध्याय में जानेंगे।
जरासंध वध
अर्जुन बहुत परेशान थे क्योंकि सुभद्रा और अर्जुन के विवाह की बात पर द्रौपदी बहुत क्रोधित होगी यह उन्हें पता था। अर्जुन जब हस्तिनापुर पहुंचे तो उन्होंने अपने बाकि भाईयों से इस बात के बारे में सलाह लेने का प्रयास किया। सभी भाईयों में से किसी के भी पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था। युधिष्ठिर ने अर्जुन को स्वेमं द्रौपदी के पास जाने और उसे बात करने की सलाह दी। अर्जुन द्रौपदी के पास पहुँचे। जब द्रौपदी ने अर्जुन को देखा तो वह बहुत क्रोधित हो गयी और उन्हें बहुत सी बातें बोली। द्रौपदी का रूठना अनिवार्य ही था क्योंकि कोई भी स्त्री नहीं चाहेगी की उसका पति उसकी सौतन ले आये। द्रौपदी ने अर्जुन को अपने कक्ष से जाने क लिए कहा अर्जुन कुछ न कह सके और वहाँ से चले गए। सुभद्रा यह सब सुनकर बहुत उदास थी। अर्जुन ने श्री कृष्ण की बातों को याद कर सुभद्रा को द्रौपदी के पास दासी वस्त्र पहन कर जाने के लिए कहा। सुभद्रा द्रौपदी के पास पहुँची उसे देख द्रौपदी ने उसको गले लगाकर अपना लिया। द्रौपदी का फैसला सुन सभी बहुत खुश हो गए। नारद जी के कहने पर इन्द्रप्रस्त में युधिष्ठिर द्वारा राजसूर्य यज्ञ होने के विषय में सोच युधिष्ठिर बहुत परेशान थे। युधिष्ठिर कामानना था की उनके जेष्ट पिता के होते हुए उनका राजसूर्य यज्ञ करना सही नहीं हैं परन्तु श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया और यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ तो होना ही था परन्तु उसमे एक रूकावट थी जो था मगध नरेश जरासंध जिसने बहुत से राज्यों पर कब्ज़ा कर रखा था और बहुत से राजाओं बंदी को बना रखा था। जरासंध सौं राजाओं की बलि चढ़ाकर शक्तियाँ प्राप्त करना चाहता था जिसमे से उसने छियासी राजाओं को बंदी बना लिया था। जरासंध का जन्म ऋषि चंदकौशिक के आशीर्वाद से हुआ था। जरासंध के पिता की दो रानियाँ थी और उनकी कोई संतान नहीं थी यही कारण था की वह संतान की प्राप्ति के लिए ऋषि चंदकौशिक के पहुँचे। ऋषि को राजा के ऊपर दया आ गयी और उन्होंने उन्हें को एक आम दिया जिसके बाद बृहद्रथ महल लौट गए। उन्होंने महल जाकर अपनी रानियों को आम के दो टुकड़े करके दे दिए उन्हें लगा था की ऐसा करने से उन्हें दोनों रानियों से एक एक पुत्र की प्राप्ति हो जाएगी परन्तु जब रानियों ने संतान हुई तो दोनों के ही आधे-आधे पुत्र जन्में रानियाँ यह देख डर गयी और उन्होंने उन टुकड़ो को जंगल में फिकवा दिया। जंगल में जरा नाम की एक राक्षसनी रहती थी जिसको वह आधे-आधे बालक मिले उसने जैसे ही उन्हें खाने के लिए साथ में पकड़ा तो वह जुड़ गए। ऐसे ही जरासंध का जन्म हुआ।श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को जरासंध वध करने की सहल दी तो थी परन्तु पांडवों के पास जरासंध की तरह सेना नहीं थी इसीलिए श्री कृष्ण ने उन्हें जरासंध को मरने का दूसरा उपाय बताया। श्री कृष्ण भीम और अर्जुन को अपने साथ लेकर भेष बदल कर मगध ले गए। मगध पहुँचकर उन्होंने अपना भेष भ्रमणों जैसे कर लिया और जरासंध की सभा में पहुँचे। जरासंध ने उन्हें देखते ही सौं गाय भेट कर दी और अन्य चीज़ो की मांग करने को कहा। श्री कृष्ण ने उन्हें आधी रात को इसका उत्तर देने को कहा जब आधी रात होने पर जरासंध उनके कक्ष में पहुँचे तो उन्हें पता चल गया की वह भ्रमण नहीं क्षत्रिय हैं। जरासंध ने उन्हें उनकी इच्छा पूछी तो श्री कृष्ण ने जरसंध से द्वन्द युद्ध की मांग की और यह भी कहा की जरासंध खुद ही चुन ले की वह किससे युद्ध करना चाहते हैं। जरासंध ने भीम को चुना और उनका परिचय जानकर कक्ष से निकल गए। अगले ही दिन जरासंध और भीम के बिच युद्ध हुआ जिसको देखने पूरा मगध आया था। दोनों में बहुत ही भयंकर युद्ध चल रहा था जिसमे भीम ने जरासंध की तंग पकड़ कर उसे बिच में से फाड़ दिया और दो टुकड़े कर फेक दिया। दो टुकड़े करने के बाद भी वह नहीं मारा और वापस अपने शरीर से आकर जुड़ गया। ऐसे ही एक से दो बार होने के पश्चात् श्री कृष्ण ने भीम को इशारा किया की वह एक हिस्से को दक्षिण की और दूसरे हिस्से को उत्तर की ओर फेके जैसे ही भीम ने ऐसा किया। जरासंध के शरीर के हिस्से फिर से नहीं जुड़ पाए और भीम की जीत हो गयी। अब मगध देश भीम को मिल चुक्का था क्योंकि भीम ने ही युद्ध जीता था। भीम ने सबसे पहले सभी राजाओं को कारागार से मुक्त कराया और उनके राज्यों भी उनको आदर सहित लौटा दिए। जरासंध के पुत्र सहदेव ने श्री कृष्ण से अपने पिता द्वारा किये अपराधों की शमा मांगते हुए उनका अंतिम क्रियाकर्म करने की आज्ञा माँगी। श्री कृष्ण ने उनको आज्ञा के साथ-साथ मगध का राजा भी बना दिया।
निष्कर्ष: हमे कभी भी अहंकार और अभिमान को खुद पर हावी होने देना नहीं चाहिए क्योंकि यही हमारी मृत्यु का कारण भी बन सकता हैं!
अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हैं तो अपने विचारों को कमैंट्स द्वारा बताए तथा औरो को भी ये आर्टिकल शेयर करे। धन्यवाद।