इस अध्याय में हम द्रौपदी का विवाह पांचों पांडवों के साथ किस प्रकार हुआ और उसके पीछे का कारण क्या था इस बारे में जानेंगे। पांडवो के द्रौपदी के स्वयंवर को जीतने के उपरांत हस्तिनापुर में किस प्रकार की खलबली मची और पांडवों के बारे में जानने के पश्चात् दुर्योधन ने की किया इस बारे में भी हम इसी अध्याय में जानेंगे।
द्रौपदी संग पांडवों का विवाह
स्वयंवर के समाप्त होने के पश्चात् द्रौपदी भीम और अर्जुन के साथ उनकी कुटिया में लौट आई। कुंती पूजा कर रही थी दोनों भाइयों ने कुटिया में घुसते ही माँ को द्रौपदी का परिचय भिक्षा कहकर किया। कुंती जो पूजा में लीन थी उसने आदेश दिया की अर्जुन जो भी भिक्षा में लाया हैं वह उसे अपने पाँचों भाइयों के साथ बाँट ले। यह सुनते ही द्रौपदी, अर्जुन,और भीम अचंभित हो गए। जैसे ही कुंती अर्जुन की तरफ मुड़ी उसने देखा की एक बहुत ही सुन्दर कन्या अर्जुन के साथ खड़ी हैं। कुंती ने जब द्रौपदी का परिचय पूछा तो अर्जुन ने उसका परिचय दिया और कहा परन्तु माता अपने तो द्रौपदी के विभाजन का आदेश दिया हैं। कुंती ने अर्जुन से प्रशन किया की क्या उसने द्रौपदी को भिक्षा कहा था तो अर्जुन ने हामी भर दी जिसपर कुंती बहुत क्रोधित हो गई। अर्जुन द्वारा द्रौपदी को भिक्षा कहना बहुत ही गलत था जिसके कारण कुंती को अपने ही द्वारा दिए गए आदेश पर बहुत क्रोध आया और उसने अर्जुन और भीम को कह दिया की अब वह करे विभाजन द्रौपदी का। तभी वहाँ बाकि तीन भाई भी आ पहुंचे और द्रौपदी को देख बहुत प्रसंन हुए। जब युधिष्ठिर ने माँ की चिंता का कारण पूछा तो कुंती ने उसे सब बता दिया। युधिष्ठिर को भी भीम और अर्जुन की इस बात पर बहुत क्रोध आया परन्तु अब तो कुंती द्रौपदी के विभाजन का आदेश दे चुकी थी। माता के आदेश को पूरा करने के लिए युधिष्ठिर ने द्रौपदी का विवाह पांचों भाईयों से होने के बारे में कहा। तभी वहाँ वासुदेव कृष्ण पधारे और पांडवों से उनकी चिंता का कारण पूछा कुंती ने सब श्री कृष्ण को बता दिया। सारी बात सनने के पश्चात् श्री कृष्ण ने उत्तर दिया की मैं जनता हूँ की अर्जुन और भीम ने बहुत बड़ी भूल की हैं परन्तु द्रौपदी का भी इस भूल में बराबर का हिस्सा हैं क्योंकि द्रौपदी ने महादेव से हठ करके एक ही वरदान में पांच वरदानों को मिला कर माँगा था। जिसमे एक ऐसे वर की माँग की गयी था जो धर्म का चिन्न हो सत्य का प्रतिक हो ,जो बलवानों में बलवान हनुमान की तरह ही बलवान हो ,परशुराम जितना बड़ा धनुर्धर हो ,बहुत सुन्दर हो और सेहन शीलता में भी उसका मुक़ाबला कोई न कर सके। महादेव ने द्रौपदी के इस वरदान पर उसे यह भी कहा था की यह सारे गुण किसी एक में नहीं मिल सकते परन्तु द्रौपदी ने महादेव से इस बात पर यह कहकर की भला महादेव द्वारा दिया गया वरदान किस प्रकार पूर्ण नहीं होगा उस दिन द्रौपदी ने यह वरदान माँग लिया था। द्रौपदी के द्वारा माँगा हुआ वरदान जो वह अपने एक वर में चाहती थी वह पाँचों पांडवों में विद्यमान था। श्री कृष्ण की बात सुनकर सभी को अपनी-अपनी गलती का ज्ञान हो गया और द्रौपदी का विवाह पांचों पांडवों से हो गया। द्रौपदी का भोई धृष्टद्युम यह सब देख कर अचंभित हो गया और उसने काम्पिल्य जाकर अपने पिता को सारी बात बता दी जिसपर द्रुपद भी बहुत क्रोधित हुए।
हस्तिनापुर में भी द्रौपदी के स्वयंवर की बात पहुंची तो सब समझ गए की द्रौपदी का स्वयंवर जीतने वाला और कोई नहीं अर्जुन ही हैं। विदुर ने धृतराष्ट्र से पांडवों को वापस बुलाने का अनुरोध किया। तो धृतराष्ट्र ने उसे पांडवों को वापस महल ले आने की आज्ञा दी। विदुर पितामह के पास पहुंचे और उनको यह समाचार सुनाया तभी भीष्म ने कहा की मैं यह पहले से ही जानता हूँ इसीलिए मैंने अपने धनुष और बाणों को साफ करना आरंभ कर दिया हैं क्योंकि मैं जानता हूँ पांडवों के हस्तिनापुर लौट आने पर दुर्योधन की ईर्ष्या बढ़ेगी और वह धृतराष्ट्र से उसे युवराज बनाने की माँग करेगा और युधिष्ठिर तो पहले से ही युवराज बन चूका हैं और ऐसा कौन सा देश होगा जहाँ दो युवराज हो। भीष्म ने पांडवों को लाने का आदेश दिया और युधिष्ठिर से यह भी कहने को कहा की हस्तिनापुर की राजनति अभी अनपूर्ण हैं। दूसरी और शकुनि को भी पांडवों के जीवित होने के समाचार के बारे में पता चल गया था जिसके बाद उसने यह बात दुर्योधन को बताकर उसे सभी के खिलाफ करना चालू कर दिया। जब दुर्योधन को यह पता चला की पांडवों को वापस लाने की बात की गयी हैं तो वह बहुत क्रोधित हो गया। दुर्योधन शकुनि की बातों में आकर धृतराष्ट्र के पास पंहुचा और धृतराष्ट्र को पांडवों को न बुलाने को कहा साथ ही आत्महत्या करने की धमकी देने लगा जिसके धृतराष्ट्र ने उसे सबर रखने के लिए कहा।
निष्कर्ष: हमें कभी भी बिना देखे और बिना सुने किसी भी चीज़ का आदेश या फैसला नहीं करना चाहिए!
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